एक बार अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम समेलन में इंडोनेशिया के प्रतिनिधि का मजाक बनाते हुए कहा गया की आप केसे मुस्लिम है आप के यहाँ रामलीला होती है महाभारत की कथाये कही जाती है , इस के उतर में इंडोनेशिया के प्रतिनिधि ने कहा “We change our religion but not fore fathers” ( हमने घर्म परिवर्तन किया है न की आपने पूर्वजो को )
जैन धर्म के प्रवर्तक आदिनाथ भगवान ऋषभ देव वेदों के अनुसार 24 वें आवतर थे | हमारे यहाँ कहा गया है
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत
अभ्युथंम अधर्मस्य तदात्म्नाहम श्रजन्य हम
जब देश में यज्ञों में बलि की पराकाष्ट नर बलि पर पहुच गई तब भगवान ऋषभ देव का अवतार हूँ और हिंसा का विरोध कर अहिंसा की स्थपन की थी
हमारा दुर्भाग्य है की समाज में व्याप्त कुरीतियों को सुधार के लिये महा पुरुषों ने नई खोज की थी उनके जाने के बाद उनके नाम पर एक नया पंथ प्रारम्भ हो गया | यथा जैन धर्म में कितने संप्रदाय होगये जो एक दूसरे के साथ बैठने को भी तैयार नहीं है | क्रन्तिकारी आचार्य श्री तुलसी के प्रयत्न से पंच रगं का एक ध्वज और एक प्रतीक जैन धर्म में प्रचलित हो गया है द्रुभाग्य से गुरुदेव को इतना समय नहीं मिला की वे पुरे देश को एक कर पाते |
क्षुद्र स्वार्थो यथा शिक्षण संस्थान को सरकारी सुविधा के लिये और कुछ नोकरियों के लिये समाज को तोड़ने का प्रयास क्या ठिक है ? भामशाओ के लिये ये गोरव की बात नहीं हो सकती |हम देते रहे है मांगने वाले नहीं वन सकते |
दादा भाई नोरोजी ने जो उतर दिया था मननीय है जिस देश और समाज ने हमें गले लगाया उसे अलग होने का पाप हम नहीं करेगे हमारे बच्चे योग्यता के आधार पर विकास करेगे
रतन टाटा का उदहारण सामने है
लूणकरण जी साहब आपने आप को हिन् नहीं समाज में भी हिन् भावना भरने का प्रयास नहीं करेगे |
आचार्य श्री तुलसी के शिष्य युवाचार्य श्री महा प्रया जी राम शिला को मगल पाठ देते हुये