Wednesday, September 21, 2011

गरीबी की नई परिभाषा , PMO ने दी थी मंजूरी


सरकार ने गरीबी की जो परिभाषा बनाई है उसके मुताबिक एक दिन के खाने पर 26 रूपये यानि एक टाइम के खाने पर 13 रुपए खर्च करने वाले लोग गरीब नहीं होते। योजना आयोग ने देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। इस हलफनामे में आयोग ने कहा है कि खानपान पर शहरों में 965 रूपये प्रति महीना और गांव में 781 रूपये प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है।

योजना आयोग के मुताबिक शहर में हर रोज 32 रूपये और गांव में 26 रूपये खर्च करने वाला शख्स बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा पाने का हकदार नहीं है। गरीबी की यह नई परिभाषा तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है।

योजना आयोग का मानना है कि हर रोज 5.5 रूपये का अनाज, 1.02 रूपये की दाल, 2.33 रूपये का दूध और 1.55 रूपये का खाद्य तेल एक इंसान को सेहतमंद रखने के लिए काफी है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि सब्जियों पर हर रोज 1.95 रूपये, फल पर 44 पैसे, चीनी पर 70 पैसे और नमक-मसाले पर 78 पैसे खर्च करना उचित होगा, जबकि 1.51 रूपये दूसरे खाद्य पदार्थो पर खर्च हो सकते हैं। किचन में गैस या दूसरे ईधन पर रोजाना 3 रूपए 75 पैसे का खर्च प्रस्तावित है।

उधर आयोग के दो सदस्य अभिजीत सेन और मिहिर शाह हलफनामे के विरोध में खुलकर सामने आ गए हैं।  यह बात भी सामने आ रही है कि योजना आयोग के इन आंकड़ों को प्रधानमंत्री कार्यालय से भी सहमति मिली थी। हालांकि अब आंकड़े में सुधार करने की बात भी कही जा रही है।

सेन और शाह ने मीडिया को जानकारी दी है कि योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के अहम सवालों के जवाब नहीं दिए। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों  की सूची में शामिल लाभार्थियों की संख्या सीमित क्यों है?  योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल का कोई साफ सुथरा जवाब नहीं दिया है कि बीपीएल सूची में आने वाले लोगों को सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ लेने की सीमा क्यों तय की गई है। अभिजीत सेन के मुताबिक आयोग ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया है। वहीं, शाह ने भी लाभार्थियों की सीमा तय किए जाने पर ऐतराज जताया है।  कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा बीपीएल लाभार्थियों के लिए कट ऑफ लगाए जाने की वजह पूछी थी। लाभार्थियों को बीपीएल कार्ड राज्य सरकारें जनगणना के आधार पर देती हैं। समाज के इस तबके के लिए कल्याणकारी योजनाओं में धन केंद्र मुहैया कराता है। लेकिन इसे योजना आयोग द्वारा तय कट ऑफ लाइन के आधार पर ही बीपीएल कार्ड धारकों को लाभ दिया जाता है।

ऐसे में अगर राज्य सरकार जनगणना के आधार पर तैयार बीपीएल सूची में आने वाले सभी लोगों को योजना का लाभ देना चाहे तो उसे सब्सिडी का भार खुद उठाना पड़ता है। योजना आयोग ने अपने हलफनामे में तेंडुलकर आयोग के ही आंकड़े दोहरा दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान सलाहकार खाद्य आयुक्त बिरज पटनायक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछे गए सवाल का ठोस जवाब न देकर योजना आयोग ने कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश की है। पटनायक के मुताबिक योजना आयोग ने दो अहम बिंदुओं पर कोई जवाब नहीं दिया है। पहला बिंदु है, गरीबी रेखा का महंगाई के आधार पर संशोधन और दूसरा बीपीएल तय करते समय कैप का इस्तेमाल न करना।

अभिजीत सेन का कहना है, ‘यह बेहद अहम सवाल है। योजना आयोग बीपीएल सूची में भी सीमा निर्धारित करने के मुद्दे पर खुलकर सामने नहीं आया है। हमें इन सवालों के जवाब आज नहीं तो कल देने होंगे। अफसोस है कि समय से इन मुद्दों पर फैसला नहीं लिया जा सका ताकि कोर्ट को सूचित किया जा सके।’ पटनायक के मुताबिक इस चूक के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय भी जिम्मेदार है क्योंकि वहां भी इस हलफनामे की जांच की गई थी। सूत्रों के मुताबिक योजना आयोग के सदस्यों के बीच हलफनामे को लेकर गंभीर मतभेद थे। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के वकीलों ने आयोग को अड़ने के लिए कहा था। वहीं, पीएमओ भी इसी रुख पर अड़ा रहा।

Thursday, August 4, 2011

मनमर्जी का शिकार है लाडनूं का मोहम्मदिया मदरसा



राज्य सरकार द्वारा संचालित होने वाली मदरसों में किस तरह की बदइंतजामी का आलम है इसका नजारा देखने को मिला जब आज यहां उपखण्ड के विभिन्न मदरसों के भौतिक सत्यापन के लिए अधिकारी आये। प्राप्त जानकारी के अनुसार मुख्य डाक घर के पास संचालित होने वाली मदरसा जामिया मोहम्मदीया एज्यूकेशन सोसायटी में विभिन्न तरह की अनियमितताएं और अव्यवस्थायें उजागर हुई। अल्पसंख्यक मामलात के तहत प्रमुख शासन सचिव रोहित आर ब्राण्डन के आदेशानुसार भौतिक सत्यापन के लिए आये एस.एस. अलाऊदीन शेरानी से मदरसे के सदर हाजी इमाम हाजी मोहम्मद ने विभिन्न शिकायतें प्रस्तुत की। जिस के तहत शिक्षा सहयोगी अब्बूबक्कर अपनी मनमर्जी से मदरसा आते है तथा उपस्थिति लगाकर चाहे जब चले जाते है। ऐसा प्रकरण अब्बूबक्कर के खिलाफ चार जुलाई को निरीक्षण पर आये अलाऊदीन शेरानी को पूर्व में भी देखने को मिला था तब उन्होंने उपस्थिति रजिस्टर में ही नोट लगा दिया लेकिन अब्बूबक्कर ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सी.एल. लगा दी। जिस पर सचिव एवं अध्यक्ष ने ऐतराज दर्ज करवाया। 


विद्यार्थी को डराकर भगा दिया घर
शिकायतों के तहत मदरसा कमेटी ने सिकन्दर निवारियां नाम के अध्यापक के खिलाफ बताया कि उसने छात्र समीर और उस के भाई को भी यह कह कर मदरसे से निकाल दिया कि यह जगह उन के पढऩें लायक नही हैं। शिकायत पर छात्र के पिता आमीन को बुलाया गया तो उसने भी घटना की तस्दीक की।
मात्र 21 ही मिले उपस्थित
मदरसे में कुल 76 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं जिसमें से 35 विद्यार्थी दिनी तालिम पुरी हो जाने के कारण छुट्यिों पर चले गये तथा शेष 41 में से मात्र 21 छात्र ही उपस्थित पाये गये जब कि हाजरी में 41 दर्ज थे।
आंगनबाड़ी में चले गये छात्र
मदरसे की अव्यवस्था से दुखी होकर अभिभावकों ने अपने बच्चों को पास में ही चल रहे आंगनबाड़ी केन्द्र में भेजना आरम्भ कर दिया।
भुगतान के अभाव में नहीं मिल रहा पोषाहार
मदरसे की अव्यवस्थाओं का आलम इतना ही नहीं इससे भी बढक़र यह है कि पिछले एक माह से इस मदरसे में बच्चों पोषाहार वितरित नहीं किया जा रहा है जिस की प्रमुख वजह मदरसे को नवम्बर 2010 के बाद अब तक मिड-डे-मील का भुगतान नहीं होना बताया है। इस संबंध में बीईईओ सुशील गिरधर का कहना है कि संबंधित कार्यालय से भुगतान कर दिया गया है जब कि सीआरसीएफ ने मदरसे को आदेश के बावजूद भुगतान नहीं पहुंचाया।
ड्यूटी समय में अध्यापक करते हैं अन्य कार्य
मदरसा सोसायटी द्वारा की गई शिकायतों से यह स्पष्ट हुआ कि यहां कार्यरत शिक्षा सहयोगी एवं मदरसा टीचर ड्यूटी समय में भी अन्य कार्य करते हैं जिस के लिए वे अक्सर मदरसे से गायब रहते है। इस सन्दर्भ की शिकायत सोसायटी ने अध्यापक जावेद व अब्बूबक्कर के खिलाफ की। 

सुधार करने के दिये निर्देश
भौतिक सत्यापन के लिए आये अधिकारी ने मदरसा कमेटी एवं अध्यापकों को कड़े निर्देश देते हुए कहा कि वे मदरसे को ढंग से संचालित करें अन्यथा उनके खिलाफ कार्यवाही की जावेगी। अधिकारी ने उपस्थिति रजिस्टर मंगवाकर नये सिरे से उपस्थिति दर्ज करने के आदेश दिये।

-शंकर आकाश

Tuesday, July 26, 2011

बेनकाब हुआ चेहरा किसका

पुरे सम्पादकीय में देश में मानवधिकार कार्यकर्त्ता कोर मशहूर पत्रकारों के नाम लिखने में भास्कर ने सहस नहीं जुटा पाने के पीछे का कारण पाठकों के समझ में नहीं आया|
कश्मीर अमेरिकन काउन्सिल और आई एस आई तो हमारे विरोधी पाकिस्तान कि स्वार्थ सीधी के लिये कार्य करना उनका कर्तव्य है | वे अपने राष्ट्रीय हित के लिय साम, दाम दंड और भेद का उपयोग करे इसमे गलत क्या हे

विदेशी भ्रमण और धन के लालच में बिकने वाले देश द्रोहियों के चेहरे का नकाब उतरनेके बाद भी आप ने अपने सम्पादकीय में ना तो उनका नाम ही लिखा ना देशद्रोह को दंड देने कि बात कही |

विवेकाधीन अधिकार , मनमानी कोटे


विवेकाधीन अधिकार के तहत भारत कि सरकारे बन सकती है विवेकाधीन कोटो कि क्या बिसात |
संविधान  प्रदत विवेकाधीन अधिकार का प्रयोग करना अगर गलत है तो भारत के राष्ट्रपति और राज्यपालो द्वारा समय समय परअल्पमत सरकारों को विवेकाधीन अधिकारों के तहत अनुमति दी |जिसका निकृष्टतम उदहारण : चरणसिंह और चंद्रशेखर को प्रधानमंत्रीबनाना |परिणाम स्वरूप बारबार निर्वाचन के बोझ टेल देश को ढके लेन से कितने करोड का खर्च वहन  करना पड़ा | महीनो राष्ट्र कि गतिविधियां रुक गई थी | देश दशको पीछे ढकेल दिया गया था |
आपने याधियुरपा सरकार के मंत्रियों द्वारा विवेकाधीन निर्णय को 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के साथ जोड़ना कहाँ तक उचित है |शुद्ध भ्रष्टाचार को संविधान द्वारा प्रदत्त अथवा परम्परा से विवेकाधीन अधिकारों कि अवमानना संविधान और परम्पराओ का अपमान है |
आपने केवल कर्नाटक और बिहार का उल्लेख किया | क्या बाकि प्रदेश ने विवेकाधीन अधिकारों का उपयोग नहीं किया ? केन्द्र सरकार के मंत्री जो विवेकाधीन अधिकार का उपयोग करंते है |इनका उल्लेख नहीं कर केवल भाजपा शासित प्रदेशो का उल्लेख भास्कर कि पक्ष निरपेक्षता भंग हुई है
आपने "सोनिया गाँधीनेऐसे तमात कोटे खत्म करने कि सिफारिश की थी " का उल्लेख किया | सोनिया गाँधी किस अधिकार से विवेकाधीन अधिकारों द्वारा किये गये निर्णय खत्म करे | सरकार को न्यायालय के चक्कर लगाने को बाध्य कर नयाझंझट खड़ा हो सकता है यह उन्हें बतैये | सोनिया जी को बताइये कि यह विवेकाधीन अधिकार क्या है ? कब से इसका प्रयोग हो रहा हैइसके द्वारा देश को किन किन संकटो का सामना करना पड़ा है |भास्कर के पाठक ही नहीं राष्ट भी जानना चाहता है |

आतंकवाद नया नहीं



Norway Blast

नॉर्वे के आंद्रे बेहरिंग ब्रिविक नामक व्यक्ति जाति विशेष के लोगो पर हर्षक हमले करने को बाध्य कर दिया होगा |

9/11 के बाद अनेक यूरोपीय देश में आव्रजन कि समस्या से जूझ रहे है | खास कर मुसलमानों कि मोजुदगी चर्चा का विषय बानगी है | यह चर्चा जूनून कि हद तक मुद्दा बन गई है नोजवानो पर खुद न्याय करने कि राह स्क्तियर करले | आंद्रे बेहरिंग ब्रिविक इसका उदाहरण है |

1947 में लाल किले में नेताओ को एक साथ समाप्त करने का षड्यंत्र पकड़ा गया | कोन थे षडयंत्रकारी ? 2001 में संसद पर आतंकी हमला स्थानीय सहयोगियों को खुले छोड़ दिया गया | जयपुर ब्लास्ट का मास्टर माइंड कॉलेज विधार्थी के कमरे में रहा परन्तु विधार्थी पर कार्यवाही नहीं हुई |देल्ही और मुम्बई बार बार आतंकियों का निशाना बराबर बनते रहे है , स्थानीय लोगो कि भागीदारी पर हम परदा डालते रहे है क्यों कि वोट बैंक खिसकने का डर जो है | इस लिये ना तो मुम्बई ब्लास्ट का अपराधी और ना ही संसद पर हमले करवाने वाले आतंकवादी को फांसी दी गई | जबकि उच्चतम न्यायालय कब का सजा सुना चूका है |पर हम आंद्रे बेहरिंग ब्रिविक नहीं बन सकते क्यों ? क्यों कि  हमारे यहाँ तो कहावत है 

अड़े सो आडिय समाजी , खड़े सो खालसा , सड़े सो सनातनी 

इतिहास साक्षी है बाप को और भाइयों को मार कर ओरंगजेब जिस आंतकवाद को शुरूआत कि वो आज तक चलरहा है | जबाब में हमने बेहरिंग ब्रिविक बनने के बजाय अपनी बहु बेटियां भेट चढाते रहे |तब से अब तक वह आतंकवाद चल रहा है |हम आज तक सड रहे है| कानून को हाथ में लेने से डरते रहे है | सब जानते है कि संसार में आतंकवाद के सब से ज्यादा पीड़ित है भारतवर्ष , आतंकियों के लिये स्वर्ग है

Sunday, July 17, 2011

ऐसा हो आपका रेज्युमे


टाइम्सजॉब्स डॉट कॉम की 
एक स्टडी से पता चला है कि किसी एक वैकेंसी के लिए एम्प्लॉयर के पास तकरीबन 200 रेज्युमे आते हैं और किसी एक रेज्युमे पर शुरुआती नजर डालने के लिए रिक्रूटर के पास महज 10-30 सेकंड होते हैं। यानी, रिक्रूटर को इंप्रेस करने के लिए आपके रेज्युमे के पास ज्यादा से ज्यादा सिर्फ आधा मिनट है। इस छोटे लम्हे में अपनी योग्यता साबित करने के लिए आपका रेज्युमे छोटा, आकर्षक और प्रभावशाली होना चाहिए।

एक अच्छे रेज्युमे का यह गुण होता है कि वह आपकी गैरमौजूदगी में आपकी वकालत करे। आप जहां नहीं होते, वहां वह आपकी तरफ से बोलता है, आपके करियर की गति बताता है और अप्लाई की गई जॉब के लिए आपको सबसे काबिल उम्मीदवार के तौर पर पेश करता है। जिन बातों से एक रेज्युमे प्रभावशाली बनता है, उन्हें जान लेना चाहिए।


नाम और कॉन्टैक्ट डिटेल्स 

रेज्युमे बनाते वक्त लेफ्ट साइड में सबसे ऊपर नाम लिखना चाहिए और उसके ठीक नीचे अपनी ईमेल आईडी और उसके नीचे फोन नंबर। हो सके तो अपना कोई दूसरा फोन नंबर भी लिख दें, क्योंकि कई बार फोन पर ही इंटरव्यू आदि की सूचना दी जाती है। दरअसल, नाम के साथ आपके कॉन्टैक्ट डिटेल्स का जाना हमेशा फायदेमंद होता है। कई लोग नाम के साथ मेल या फीमेल भी लिख देते हैं, जो बिल्कुल हास्यास्पद है, क्योंकि मोटे तौर पर नाम से ही जाहिर हो जाता है कि वह शख्स मेल है या फीमेल। ऐसा न करें। 

ई-मेल आईडी बिल्कुल पर्सनल चीज है। हर शख्स आजाद है कोई भी ईमेल आईडी बनाने के लिए, लेकिन रेज्युमे में ऐसी आईडी का जिक्र न करें जो देखने में अजीब लगे। इससे एम्प्लॉयर पर खराब इंप्रेशन पड़ सकता है। मसलन अगर नितिन नाम का कोई शख्स अपने रेज्युमे में teesmarkhannitin@gmail.com याtoosmartnitin@gmail.com जैसी कोई आईडी लिखेगा तो आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि एम्प्लॉयर पर उसका कैसा असर होगा। आईडी बिल्कुल सादा होनी चाहिए। इसमें आपका पूरा नाम आ जाए तो बहुत अच्छा। नाम न भी आए तो भी आईडी में किसी ऐसे वैसे शब्द का इस्तेमाल न हो। 

कॉरेस्पॉन्डेंस अड्रेस 

टॉप राइट साइड में अपना कॉरेस्पॉन्डेंस अड्रेस दे सकते हैं। परमानेंट अड्रेस भी देना चाहिए, लेकिन उसकी जगह रेज्युमे में सबसे अंत में रखें, तो बेहतर है। 


ऑब्जेक्टिव 

ऑब्जेक्टिव को लेकर तमाम लोग कंफ्यूज रहते हैं कि इसे लिखा जाए या नहीं। अगर लिखा जाए तो कितना बड़ा। एक्सपर्ट्स की राय है कि ऑब्जेक्टिव को छोड़ा भी जा सकता है और आप सीधे एजुकेशन पर आ सकते हैं। कुछ एम्प्लॉयर नाम पते के बाद एजुकेशन देखना चाहते हैं, लेकिन परंपरागत तरीके से अगर ऑब्जेक्टिव लिखना ही चाहते हैं तो ध्यान रहे कि यह छोटा, सादा और सीधा हो। कई लोग इसके तहत लंबी चौड़ी फिलॉसफी लिख मारते हैं और भाषा को कठिन बनाने में जान लगा देते हैं, जो गलत प्रैक्टिस है। 

कई लोग 'मैं' शैली में यह भी लिखते हैं कि उन्हें क्या चाहिए और वे क्या कर सकते हैं, लेकिन ऐसी बातों से बचना चाहिए। साफ और कम शब्दों में यह बताएं कि आप कंपनी के लिए कैसे फायदेमंद हो सकते हैं। इसके लिए आप अपनी स्किल्स का हवाला दे सकते हैं। हो सके तो अपने वर्क एरिया से जुड़ी र्टम्स का इसमें इस्तेमाल करें। कुछ इस तरह आप इसे लिख सकते हैं। 

Objective : To contribute strong ________ skills and experience to your organization in a _________ capacity. 


एजुकेशन क्वॉलिफिकेशन 

अब बात एजुकेशन क्वालिफिकेशन की। क्वॉलिफिकेशन बताते वक्त रिवर्स कोनोलॉजी का इस्तेमाल करना है। लेटेस्ट क्वॉलिफिकेशन सबसे पहले लिखें और फिर नीचे की तरफ बढ़ते जाएं। क्वॉलिफिकेशन लिखने का क्रम यह हो सकता है : डिग्री, यूनिवर्सिटी, शहर/राज्य, ईयर और सीजीपीए। इसके अलावा यह भी ध्यान रखें कि अगर आपने पोस्ट ग्रैजुएशन किया है तो जाहिर है इंटर और हाई स्कूल तो किया ही होगा। इसलिए छोटी डिग्रियों के बारे में लिखकर जगह वेस्ट न करें। इसका खराब इंप्रेशन भी जा सकता है। प्रफेशनल क्वॉलिफिकेशन के अलावा पीजी और ग्रैजुएशन के बारे में बताना पर्याप्त है। इसे दिखाने के लिए हो सके तो टेबल बना सकते हैं, नहीं तो सिर्फ बुलेट के साथ भी ये सूचनाएं दी जा सकती हैं। 

वर्तमान पद और एक्पीरियंस 

टाइम्सजॉब्स डॉट कॉम से मिली जानकारी के मुताबिक, इसके बाद अपना वर्तमान पद और अनुभव के बारे में बताएं। कुल अनुभव सालों में बता सकते हैं। अनुभव बताते समय लोग जब से नौकरी शुरू की है, तब से लेकर अब तक की रामकहानी लिख मारते हैं। हो सकता है, वे सभी पोस्ट और काम आपके लिए महत्वपूर्ण रहे हों, लेकिन आपके नए एम्प्लॉयर को इस सबसे कोई खास मतलब नहीं है। वह सबसे पहले आपके वर्तमान पद की डिटेल्स जानना चाहता है। वह जानना चाहता है कि आपने पिछले ऑगेर्नाइजेशन में किस पद पर, कितने दिन और किस रोल में काम किया है। इसलिए अनुभव के बारे में बताते हुए रिवर्स क्रोनोलॉजिकल ऑर्डर का यूज करें। 

जिस कंपनी में अभी काम कर रहे हैं, वह सबसे ऊपर, उसके बाद उससे पहले के अनुभवों का जिक्र करें। अगर किसी को 15 साल का अनुभव है तो हर रोल और हर कंपनी का जिक्र करना जरूरी नहीं है। अभी क्या कर रहे हैं और इसके अलावा निभाये गए कुछ महत्वपूर्ण रोल और प्रॉजेक्ट्स का जिक्र कर सकते हैं। अपना अनुभव बताने का सही क्रम यह हो सकता है : एम्प्लॉयर का नाम, टाइटल/पोजिशन, शहर/राज्य का नाम, कब से कब तक काम किया। अगर कभी आपको नौकरी से निकाला गया है तो अनुभव बताते हुए उस टाइम पीरियड को छोड़ भी सकते है, लेकिन अगर यह समय ज्यादा है तो उसे दिखाया जाना चाहिए। इस समय के बारे में आप बता सकते हैं कि उस दौरान आपने एंटरपिन्योरशिप की। 

स्किल्स और हॉबीज 

स्किल्स की जहां तक बात है, तो बच्चों जैसी बातें लिखने से बचा जाना चाहिए। मसलन स्किल्स में अगर कोई यह लिखे कि उसे एमएस वर्ड या टाइपिंग आती या उसे कंप्यूटर की नॉलेज है, तो उसका एम्प्लॉयर पर कोई पॉजिटिव असर नहीं होगा, हां उसे हंसी जरूर आ सकती है। आई गिव 100 परसेंट, आई लाइक टु वर्क इन कॉम्पिटिटिव एन्वायरनमेंट और गुड कम्युनिकेशन स्क्ल्सि जैसे जुमलों का इस्तेमाल करना अव्वल दर्जे की बेवकूफी है। ये रटे-रटाए जुमले हैं। इन्हें लिखने से बचा जाना चाहिए। 

एक्स्ट्राकरिकुलर एक्टिविटीज, अचीवमेंट, हॉबी आदि का जिक्र कर सकते हैं, लेकिन पूरी सावधानी से। मसलन गाने का शौक है, कविताएं लिखना अच्छा लगता है या कुकिंग आती है जैसी हॉबीज का कोई मतलब नहीं है। अगर आप म्यूजिक इंडस्ट्री में अप्लाई कर रहे हैं तो गाने का शौक मायने रखता है लेकिन अगर आप मार्केटिंग जॉब के लिए जा रहे हैं तो एम्प्लॉयर को आपके सुरों से भला क्या लेना देना! उसे तो कोई ऐसी हॉबी बताइए जिससे आपके एक्स्ट्रोवर्ट होने का सबूत मिलता हो। 

पर्सनल सूचनाएं 

रेज्युमे के सबसे अंत में आप अपने पिता का नाम, डेट ऑफ बर्थ, मैरिटल स्टेटस और अगर देना चाहें तो परमानेंट अड्रेस भी दे सकते हैं। डेट ऑफ बर्थ बताते वक्त साथ में यह भी लिख दें कि वर्तमान में आप कितने साल के हैं। सिर्फ बर्थ ईयर से आपकी उम्र पता करने में कैलकुलेशन करनी होगी, जिसके लिए एम्प्लॉयर के पास वक्त नहीं होता। इसी तरह मैरिटल स्टेटस की जानकारी भी देनी चाहिए। 

10 
का दम
 




1. फॉन्ट और फॉन्ट साइज 

फॉन्ट साइज और फॉन्ट के टाइप को लेकर कई बार कंफ्यूजन हो सकता है। इसके लिए याद रखें कि पूरे रेज्युमे में ज्यादा से ज्यादा दो फॉन्ट का ही प्रयोग करना चाहिए। इंग्लिश के एरियल और टाइम्स रोमन फॉन्ट को यूज कर सकते हैं। ये पढ़ने में आसान और साफ होते हैं। फॉन्ट साइज इतना हो कि आसानी से पढ़ने में आ जाए। इसे 11 रख सकते हैं। 

2. बोल्ड, अंडरलाइन, इटैलिक 

शब्दों को बोल्ड, अंडरलाइन या इटैलिक जरूरत से ज्यादा न करें। वाइट स्पेस भरपूर हो। वाक्यों और सबहेड्स के बीच गैप भी ठीकठाक हो, जिससे पढ़ने में आसानी हो। बहुत ज्यादा गछे हुए रेज्युमे को कोई पढ़ना नहीं चाहता। याद रखिए रेज्युमे पर एम्प्लॉयर सिर्फ 20 सेकंड के लिए पहली नजर डालते हैं। इस दौरान अगर उन्हें पढ़ने में दिक्कत हुई या बोल्ड, इटैलिक के चक्कर में नजर नहीं जमीं, तो उन्हें आगे बढ़ते देर नहीं लगती। 

3. रेज्युमे का साइज 

एक बड़ा सवाल यह होता है कि रेज्यूमे का साइज कितना होना चाहिए? देखा जाए तो यह आपकी इंडस्ट्री और अनुभव पर निर्भर करता है। फिर भी मोटे तौर पर माना जाता है कि अगर आपका अनुभव पांच साल से कम है तो एक पेज का और अनुभव पांच साल से ज्यादा होने पर दो पेज का रेज्यूमे बनाया जा सकता है। इससे बड़ा रेज्युमे बनाने से बचना चाहिए। ध्यान रखें रेज्युमे आपका शोकेस है, जो आपके बारे में एम्प्लॉयर को बेसिक सूचनाएं देता है। आपके बारे में गहराई से जानने के लिए एम्प्लॉयर आपको इंटरव्यू के लिए बुलाएगा। 

4. भाषा सीधी सपाट 

पूरे रेज्युमे की भाषा सीधी-सपाट रखें। अब इन जनाब को देखिए, इन्होंने रेज्युमे में अपनी इंग्लिश भाषा का पूरा ज्ञान बघार दिया है - “Sir, I would hereby draw your esteemed attention to the way my talents are in tandem with your company’s long-term goals . याद रखें इतने घूमे हुए वाक्य हो सकता है कि साहित्य में अच्छे लगें, लेकिन आपके एम्प्लॉयर को पसंद नहीं आएंगे। अपनी बात सीधे शब्दों में कहें। 

5. ज्यादा 'मैं मैं' नहीं 

रेज्युमे में आई, माई, मी जैसे शब्दों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल न करें। 

मसलन, I overshot my target by 20 percent and I was given a special increment by the company. . 

की बजाय ऐसे लिख सकते हैं Overshot the target by 20 percent and was given a special increment by the company. जो भी वाक्य लिखना है, प्रोनाउन ( I ) की बजाय वर्ब ( did, achieved ) से लिखना शुरू करें। 

6. रेफरेंस सिर्फ पूछने पर 

रेज्युमे में रेफरेंस का जिक्र न करें, लेकिन ऐसे दो लोगों को तैयार जरूर रखें, जो उस कंपनी में काम करते हों और आपको अच्छी तरह जानते हों। जब जरूरत हो या आपसे पूछा जाए, तो इन लोगों के बारे में बताएं। अगर रेज्युमे में लिखना ही चाहते हैं, तो दोनों नाम ऐसे हों, जो आपको अच्छी तरह से जानते हों। हल्की-फुल्की जान-पहचान वालों के नाम इसमें न दें। साथ में फोन नंबर दे देना भी अच्छा होता है। 

7. स्पेलिंग्स और पंक्चुएशन 

स्पेलिंग संबंधी गलतियों से बचा जाना बेहद जरूरी है। इसके लिए ऐसे शब्द न लिखें, जिनसे आप परिचित नहीं है। रेज्युमे बनाते वक्त डिक्शनरी देखते चलें। स्पेल चेक का प्रयोग भी कर सकते है। आजकल की एसएमएस की भाषा में हर शब्द का शॉर्ट फॉर्म चलन में है। ऐसे किसी भी प्रयोग से पूरी तरह बचें। शब्दों की स्पेलिंग पूरी लिखें। 

इडियम्स, फ्रेज, मुहावरे, स्लैंग, जारगन आदि के प्रयोग से भी पूरी तरह बचना है। रेज्युमे फाइनल बना लेने के बाद दो दोस्तों से उसकी प्रूफ रीडिंग जरूर करा लें। पंक्चुएशन का खास ध्यान रखें। हर सेन्टेंस के अंत में एक बार स्पेस दें। नया सेन्टेंस कैपिटल लेटर से शुरू करें। रेज्युमे में साइन ऑफ एक्सक्लेमेशन लगाने से बचें। 

8. ग्रामर की गलतियां नहीं 

ग्रामर के मामले में बहुत सावधान रहने की जरूरत है। जो आप आज कर रहे हैं, वह काम प्रजेंट टेंस में लिखें। मसलन do marketting जो काम पहले कर चुके हैं, उन्हें पास्ट टेंस में लिखें। मसलन did marketting सभी प्रॉपर नाउन (किसी शख्स या शहर का नाम) को कैपिटल में लिखें। नंबर लिखते वक्त नौ तक के सभी नंबर शब्दों में लिखें और 10 से आगे के नंबरों को अंकों में लिखें। तारीख का जिक्र करते हुए एक ही फॉरमैट का इस्तेमाल करें।

अगर 2 नवंबर, 2009 स्टाइल में डेट लिख रहे हैं तो पूरे रेज्युमे में हर जगह इसी स्टाइल में लिखें। इसके अलावा, झूठ का सहारा न लें। जो भी सूचनाएं देनी हैं, सच-सच बताएं। हो सकता है आपको ऐसा लगे कि गलत सूचनाएं पकड़ में नहीं आएंगी और बात चल जाएगी, लेकिन कई बार एम्प्लॉयर चीजों को वेरिफाई भी कर लेते हैं। इसलिए ऐसी प्रैक्टिस से बचें। 

9. नो फोटो, नो पैकेज 

रेज्युमे में फोटो का यूज नहीं करना चाहिए क्योंकि जिस स्टाइल में और जिस साइज में आप फोटो पेश करेंगे, वह न तो क्वालिटी में अच्छा आएगा और न देखने में। जाहिर है इसका एम्प्लॉयर पर अच्छा इंप्रेशन नहीं पड़ेगा। वर्तमान सैलरी पैकेज के बारे में रेज्युमे में न बताएं। इस बारे में डिस्कशन इंटरव्यू के दौरान हो जाएगा। 

10. प्रिंट की बात 

रेज्युमे का प्रिंट हमेशा ए-4 साइज के वाइट पेपर पर ही लें। पेपर के एक ही साइड में लिखें। प्रिंटआउट अगर लेसर प्रिंटर से ले लें, तो और भी अच्छा है। कहीं भी हार्ड कॉपी देनी हो, तो रेज्युमे की फोटोकॉपी देने से बचें। हर बार फ्रेश प्रिंट निकालकर ही दें। समय-समय पर अपना रेज्युमे अपडेट करते रहें।

Wednesday, July 6, 2011

आप भारत के लिए क्या कर सकते हैं : डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम


आप भारत के लिए क्या कर सकते हैं
(डॉ. कलाम ने यह स्पीच हैदराबाद में 2008 में दी थी। )




डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम।। 
यहां मीडिया इतना नेगेटिव क्यों है? हम अपनी ताकत और उपलब्धियों को स्वीकार करने में इतना संकोच क्यों करते हैं। हमारे पास सफलता के अनेक अनुपम उदाहरण हैं, कामयाबी के अनेक किस्से हैं, लेकिन हम इन्हें मानने से इनकार करते हैं, आखिर क्यों? रिमोट सेंसिंग सैटलाइट्स में हमारा पहला स्थान है। दूध उत्पादन में हमारा नंबर पहला है। हम गेहूं और चावल के दूसरे बड़े उत्पादक है। डॉ. सुदर्शन को देखिए। उन्होंने एक आदिवासी गांव को आत्मनिर्भर इकाई में बदल दिया है। उपलब्धियों के ऐसे लाखों उदाहरण हैं, लेकिन हमारे मीडिया को बुरी खबरों, असफलताओं, विपदाओं, आतंकवाद और अपराध के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता। 

दूसरा सवाल यह है कि हम विदेशी चीजों के इतने दीवाने क्यों हैं? हमें विदेशी टीवी, विदेशी कमीजें और विदेशी टेक्नॉलजी चाहिए। आयातित वस्तुओं के प्रति इतना मोह क्यों? क्या हम इस बात को महसूस नहीं करते कि आत्मसम्मान आत्मनिर्भरता के साथ आता है। हैदराबाद में मेरा ऑटोग्राफ लेने आई एक 14 साल की लड़की से मैंने पूछा कि तुम्हारा लक्ष्य क्या है? उसका जवाब था, 'मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूं।' उसकी खातिर, आपको और मुझे इस विकसित भारत का निर्माण करना है। आपको दृढ़तापूर्वक कहना होगा कि भारत कम विकसित देश नहीं है। वह अत्यंत विकसित देश है। यदि आपके पास 10 मिनट हैं तो इन पंक्तियों को पढि़ए: आप कहते हैं कि आपकी सरकार नाकारा है। कानून पुराने हो चुके हैं, नगरपालिका कूड़ा नहीं उठाती, फोन काम नहीं करते, रेलवे मजाक बन चुकी है, हमारी विमान सेवाएं दुनिया में सबसे खराब हैं और डाक समय पर नहीं मिलती आदि-आदि। 

आप कहते हैं, कहते हैं और कहते हैं, लेकिन इसके लिए आप क्या करते हैं? किसी ऐसे व्यक्ति को चुनिए जो सिंगापुर जा रहा हो। उसे अपना नाम दीजिए, उसे अपना चेहरा दीजिए। आप एयरपोर्ट से बाहर निकलते हैं, आपके सामने उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय शहर है। सिंगापुर में आप सिगरेट के जले हुए टुकड़े सड़कों पर नहीं फेंकते या स्टोरों में कुछ नहीं खाते। उसके अंडरग्राउंड लिंक्स पर आपको गर्व है। यदि आप किसी रेस्त्रां या शॉपिंग मॉल में निर्धारित समय से ज्यादा रुकते हैं तो पार्किंग में वापस आकर अपना पार्किंग टिकट पंच करते हैं, भले ही आपका स्टेटस कुछ भी हो। आप दुबई में रमजान के दौरान सार्वजनिक रूप से खाने की हिम्मत नहीं कर सकते। आप जेद्दाह में सिर ढके बगैर बाहर निकलने का साहस नहीं कर सकते। आप नारियल का खोल ऑस्ट्रेलिया या न्यू जीलैंड के समुद्री तटों पर कूड़ेदानों के अलावा कहीं और नहीं फेंक सकते। आप टोक्यो की सड़कों पर पान की पीक क्यों नहीं थूकते या बोस्टन में नकली सर्टिफिकेट्स प्राप्त करने के लिए परीक्षा के दलालों का इस्तेमाल क्यों नहीं करते? 

आप दूसरे देशों में उनकी भिन्न शासन व्यवस्था का सम्मान कर सकते है और उनके नियमों का पालन कर सकते हैं, लेकिन अपने देश में आप ऐसा नहीं कर सकते। भारतीय जमीन को छूने के तुरंत बाद आप ही सबसे पहले सड़क पर कागज और सिगरेट के टुकड़े फेंकेंगे। यदि आप किसी पराये देश में एक अच्छे नागरिक की तरह पेश आते हैं तो वैसा व्यवहार भारत में क्यों नहीं कर सकते? 

एक बार बंबई (मुंबई) के पूर्व म्युनिसिपल कमिश्नर श्री तिनैकर ने कहा था कि अमीर लोगों के कुत्ते सड़कों पर चहलकदमी करते हैं और सब जगह गंदगी छोड़ जाते हैं और फिर यही लोग गंदी सड़कों पर गंदगी और निकम्मेपन के लिए अधिकारियों को दोषी ठहराने लगते हैं। अमेरिका में प्रत्येक कुत्ता मालिक को अपने पालतू जानवर द्वारा छोड़ी जाने वाली गंदगी खुद साफ करनी पड़ती है। जापान में भी ऐसा ही करना पड़ता है। क्या भारतीय नागरिक भारत में ऐसा करेंगे। हम सरकार चुनने के लिए चुनाव में हिस्सा लेते हैं और उसके बाद सारी जिम्मेदारियां भूल जाते हैं। हम आराम से हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाते हैं और पुचकारे जाने का इंतजार करते हैं। हम सरकार से अपेक्षा रखते हैं कि वह हमारे लिए सब कुछ करे, जबकि हमारा योगदान पूरी तरह नेगेटिव होता है। हम सरकार से सफाई की उम्मीद रखते हैं, लेकिन हम चारों तरफ कूड़ा फेंकते रहेंगे। हम चाहते हैं कि रेलवे साफ-सुथरे बाथरूम उपलब्ध कराए, लेकिन हम यह नहीं सीखना चाहते कि बाथरूम का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए। हम चाहते हैं कि एयर इंडिया सवोर्त्तम खाना और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए, लेकिन मौका मिलते ही हम चीजें चुराने का कोई मौका नहीं छोड़ते। 

जब दहेज और कन्या भ्रूण हत्या जैसे ज्वलंत सामाजिक मसलों की बात आती है तो हम गला फाड़ कर बड़े-बड़े प्रवचन देते हैं लेकिन अपने घरों में ठीक उनके विपरीत आचरण करते हैं। हम क्या दलील देते हैं? 'हमें पूरे सिस्टम को बदलना होगा। यदि मैं अपने बेटों के लिए दहेज मांगने का हक छोड़ भी दूं तो इससे क्या फर्क पड़ेगा।' सिस्टम को कौन बदलेगा? यह सिस्टम किसका बना है? यहां पर हम बहुत ही सुविधाजनक ढंग से कहने लगते हैं कि सिस्टम में हमारे पड़ोसी हैं, दूसरे घर-परिवार हैं, दूसरे शहर हैं, दूसरे समुदाय हैं और सरकार है, लेकिन मैं और आप निश्चित रूप से इसमें शामिल नहीं हैं। जब सिस्टम में सकारात्मक योगदान करने की बात आती है तो हम अपने परिवारों के साथ किसी सुरक्षित आवरण में छुप जाते हैं और दूरदराज के देशों की तरफ ताकने लगते हैं और एक ऐसे मिस्टर क्लीन के आने का इंतजार करते हैं जो एक झटके में हमारे लिए चमत्कार कर दे। हर कोई सरकार को गालियां देने और उसे खरी-खोटी सुनाने में जुट जाता है। कोई भी सिस्टम को मजबूत करने के बारे में नहीं सोचता। हमारी अंतरात्मा पैसे की गिरवी हो गई है। 

प्यारे भारतीयों, यह लेख अत्यंत विचारोत्तेजक है, यह हमें आत्मनिरीक्षण के लिए कहता है। मैं यहां जॉन एफ. केनेडी द्वारा अमेरिकियों को कहे गए शब्दों को भारतीयों के साथ जोड़ कर पेश करना चाहता हूं: 'यह पूछो कि हम भारत के लिए क्या कर सकते हैं और वह सब करिए ताकि भारत भी अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों जैसा बन सके।' आइए हम वह सब करें, जो भारत हमसे चाहता है।