राजस्थान पत्रीका १८ फरवरी के सम्पदिकीय “ बची रहे मर्यादा” पर कैसे जनप्रतिनिधि सांसद विधायक पार्षद पंच सरपंच सब हमसे ही बनते है | हमारे चरित्र और व्यवहार का आईना होते है ये जनप्रतिनिधि |
अजमेर और बीकानेर नगर निगमों का उदाहरण आपने दिया | पार्षद भिड गये | मारपीट हो गई | जूते चप्पल चले | हमें इस में कारण जानना आवश्यक है | नई व्यवस्था में अध्यक्ष का सीधा चुनाव से जो विसंगतियाँ पैदा हुई उसीका का परिणाम है मारपीट जूता पेजम विकाश में बाधा सताधारी दल की मनमानी |
अध्यक्ष कांग्रेस का पार्षदों में बहुमत भाजपा का अजमेर के झगडे की शुरुआत हुई बैठके की योग्य व्यवस्था नहीं होना , क्यों की अध्यक्ष ( कांग्रेस ) ने भाजपा पार्षदों को निचा दिखाने के लिये बैठने की माकूल व्यवस्था नहीं की |आपति करने पर नारेबाजी लात घूंसे और मारपीट होनी ही थी |
अद्यक्ष के पास बहुमत नहीं हो तो बहुत पार्षदो के प्रस्ताव को मान लेने से विवाद खड़ा नही हो सकता | जनतन्त्र में बहुमत को साथ लेकर चलने से विकाश में बाधा नहीं आएगी | कुर्सी का रोब और मनमानी बहुमत के आगे चलना संभव हो सकता |राजस्थान सरकार की नाक के निचे राजधानी जयपुर में निगम के अध्यक्ष सताधारी कांग्रेस की हे पर बहुमत भाजपा के पास है | इस लिये अब तक समितियों का गठन नहीं हुआ | विकाश के प्रस्ताव पास नहीं हो रहे हे | राजस्थान सरकार को नये लागु इस कानून पर चिंतन करना चाहिए | सुविधाओ के लिये पक्ष विपक्ष एक हो जाते हे| इस में आश्चर्य केसा, ये तो समाज का आईना ही है |
हम आपने स्वार्थ सिधि में डूबे रहते है तो हमारा प्रतिनिधि हम्रारे भाई भी तो वही करेगे जब तक समाज नहीं सुधरता हमारे प्रतिनिधियों से ईमानदारी की अपेक्षा करना कैसे ठीक हो सकता है |व्यवस्था सुधार के लिये समाज को संस्कारित कीजिये |
मानमल्ल नाहर की कलम से
मानमल्ल नाहर की कलम से
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