Tuesday, February 15, 2011

अल्प विद्या धुन्धरे ( उप राष्ट्रपति की पत्नी श्री मति सलमा अंसारी के बयान पर )


बिटियन की जो| . राजस्थान पत्रिका १२ फरवरी २०११ का सम्पादिकय पढ़ा . उप राष्ट्रपति की पत्नी श्री मति सलमा अंसारी यह कहना सनसनीखेज और अफ़सोस जनक ही नहीं एक तरफ़ा भी है जहा तक लड्कियों की सुरक्षा का सवाल है क्या स्वयं लड़किया जिमेदार नहीं ? 

लड़कियों को जन्मते ही मार देने का सुझाव शायद लाडो सीरिए़ल के अम्माजी से प्रभावित है अन्यथा सलमा जी  जिस समाज से सम्बंधित है उसमे बुरका के प्रावधान के पीछे भी बेटिओ  , महिलाओ की सुरक्षा से ही जुडी हुई प्रथा हैं

सरकार द्वारा दो से आधिक संतान का प्रावधान लिंगानुपात का कारण है , भूण हत्या , बलात्कार और अपहरण का मूल कारण भी लिंगानुपात यानि सरकार की गलतनीति का परिणाम है . दो से आधिक संतान होते ही नोकरी नहीं मिलेगी | चुनाव नहीं लड़ सकते इसलिए भूण हत्या होती है लिंगानुपात बिगड़ता है |

भूख से व्याकुल व्यक्ति को रास्ते पर पतल चाटते देखा जा सकता हैं भूख मिटाने के लिये व्यक्ति अपराध करने से भी नहीं चुकता  अपहरण और बलात्कार के पीछे भी सेक्स की भूख मुख्य कारण है क्योंकि लिंगानुपात की मार के कारण कुवारे व्यक्ति कहा जायेंगे लड्किया स्वयं जिम्मेदार है

बुर्के की तरह चुनी लेने का समाज में प्रावधान था आज लड़किया चुनी का उपयोग गले में फांसी लगाने के लिये करने लगी है टोपलेस, बोटमलेस, टाईट फित्तिंग, जींस टीशर्ट आदि का परयोग रास्ते चलते जवान को आकर्षित ही नहीं उतेजित भी करती है.विद्यालयों में स्लिक्लेस पहन कर अध्यापिका पहुँचती है तो साथी अध्यापको युवा विधार्थी भी उनकी और आकर्षित हुए बिना नहीं रहते !

     मानवीय उपराष्ट्रपति जी की पत्नी श्रीमती सलमा अंसारी जी लड़कियों को मारने के स्थान
१. केन्द्र सरकार नोकरियो और निर्वाचन से दो संतान का प्रावधान हटाने के लिय बाध्य करे !
२. महिलाओ और लड़कियों  को पश्चमी का अंधानुकरण छोड़कर सलीके के कपड़े पहनने के संस्कार दिलाने का पर्यास करे  विधालय इसमे महन्ती भूमिका निभा सकते  है जीन्स और जर्सी जेसे खतरनाक प्रावधान बेटियों की सुरक्षा के लिय बंद करना आवश्यक है
३ महिलाओ के लिय घर से बाहर कार्य के लिय कुछ विभागों में रिज्र्वेसन का प्रावधान भी समस्या के  समाधान में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं
श्री मति सलमा अंसारी को तो लिखना चाहिए था अगले जन्म मोहे बिटिया ही की जो अफ़सोस उनको भारतीय वीरांगनाओ को कल्पना भी नहीं हे इतिहास साक्षी है , कवि ने कहा है
दुर्गावती जब रण में निकली,
हाथो में थी तलवार दो |
धरती कांपी आकाश हिला,
जब चलने लगी तलवारे दो ||
मानमल्ल नाहर की कलम से 

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