Thursday, February 17, 2011

संघ को समझिये – गुलाबजी



राजस्थान पत्रिका 3 फरवरी 2011 का विशेष सम्पादकीय श्री गुलाबजी कोठारी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत के अजमेर आगमन पर "भले पधारया " पूर्वाग्रह ग्रसित लगा कुछ बिन्दू विचार के लिए प्रस्तुत हैं आपने लिखा "शाखाओं का सूखेत जाना ......। नई पीढी का शाखाओ से मोह भंग "| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखायें नित्य लगती है। नित्य प्रति का कार्य एक कठोर तपस्या से कम नही होता। मैं आपकी जानकारी के लिए लाडनूं जैसे छोटे स्थान (जिला स्थान नहीं)पर कार्य क्रम में उपस्थित गणवेशधारी स्वयंसेवको का चित्र भेज रहा हूँ नई पीढी भी सक्रीय है। "मोह भंग" का भाव आपके मन मे कहां से आया? शाखाओ के सूखने का निर्णय में आपका आधार क्या है? जबकि प्रत्येक कार्य समिति की रिपोर्ट शायद आपने नही देखी होगी ।उदयपुर में विधार्थी परिषद के विभाग संगठन का शिविर हो गया। असम से आये संगठन मंत्रियो में कर्नाटक के जीवन दानी नोजवान कार्य कर्तोओं से मिलकर प्रसन्नता हुई कि कमजोर प्रदेशों में सरप्लस प्रांत गोद लेकर कार्य कर्ता भेजते है जिनका सबसे पहला कार्य वहां की भाषा सीखना होता है। शाखायें सूखी होती तो बाहर भेजने के लिए कार्य कर्ता कहां से आते ? मेरा श्री मान् गुलाबजी साहब कोठारी से निवेदन है कि संघ की स्थापना 1925 में हुई थी और 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना स्वर्गीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी। 1948 में महात्मा गांधी के स्वर्गवास के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था क्यों? सही जानकारी के लिए  "मिशन विद माउन्ट बेटन" नामक पुस्तक माउन्ट बेटन के सेक्रेट्री ने लिखी है पढने का श्रम करावें। गांधी जी के नाम पर संघ के कार्य कर्ताओं पर जिस प्रकार का जुल्म ढहाया गया था वह आपके ध्यान में नही हो सकता है। आपने 1984 मे इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों पर जो अत्याचार हुए अपनी आंखो से देखे ही है राजस्थान पत्रिका निकाल कर अवलोकन करें।
प्रतिबंध को हटाने के लिए 1949 में संघ ने आन्दोलन किया । शाखायें बन्द थी। प्रतिबंघ हटने के बाद तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरूजी का पूरे देश का प्रवास हुआ। गुरूजी के स्वागत में उमङी जनता को देख सुनकर डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी नागपुर श्री गुरूजी से मिलने गये । संघ के राजनैतिक दल बना देना चाहिए के उनके प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए गुरूजी ने उनको प्रश्न किया था "पेङ की जङ को छोङकर पतों पर पानी देने वाले को आप क्या कहेगें? पर मुखर्जी ने प्रति प्रश्न किया कि क्या हिन्दू हित रक्षा के लिए अपने विचारों का राजनैतिक दल नहीं चाहिए । गुरूजी ने कहा -आप राजनीति में है आप करिए। मैं अकेला क्या कर सकता हूँ पर श्री गुरूजी ने कहा कि प्रत्येक प्रदेश मे आपको कार्यकर्ता देंने को हम तैयार है। उदाहरण के लिए अपने राजस्थान से सुन्दरसिंह जी भण्डारी ,लालक्रष्ण आडवाणी ओऱ दीनदयाल जी उपाध्याय का नाम प्रमुख है।
कोठारी जी पत्रिका देखिए एक वर्ष में ही भारतीय जन संघ पहले निर्वाचन मे ही अखिल भारतीय दल धोषित हो गया था। चुनाव के बाद डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था "मैं पंडित जवाहरलाल नेहरु को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होने हमारा भारतीय जनसंघ का नाम पूरे देश में पहुंचा दिया। इतने विशाल देश में एक वर्ष की शिशु पार्टी को पहुंचने की क्षमता नहीं थी।
एक पिता के पुत्रों मे कोई व्यापारी ,कोई डॉक्टर, कोई वकील , कोई अध्यापक ओर कोई किसान हो सकता हैं। वे सब एक ही परिवार के अंग होने के नाते साथ बैठते है साथ खाते है । एक का काम दुसरा नहीं कर सकता पर सबकी आय एक पिता के पास पहुंचती है पिता के आदेश पर उस सांझी कमाई का उपयोग भी होता है पिता का अनुशासन और प्यार सबके लिए समान होता है। संघ परिवार के संगठन स्वतंत्र है | बडो से मार्ग दर्शन लेना हमारी संस्कृति है.
"संघ भाजपा के काम मे दखल नही करेगा" क्या डॉक्टर अथवा वकील के स्थान पर पिता अथवा दुसरा भाई काम कर सकता है। पिता परामर्श तो दे सकता है पर दखलंदाजी कर वकील की जगह कोर्ट मे उपस्थित नही हो सकता ।
"भाजपा को राख से भी उठ खङा होना आता है।" 1951-52 में जनसंघ की अखिल भारतीय मान्यता, 1975 के आपातकाल के बाद जनता पार्टी के माध्यम से सम्मिलित सरकार ओर 1980 मे भारतीय जनता पार्टी का निर्माण। दोहरी सदस्यता का नारा देने वाले जनता पार्टी से टूट कर बने दल बिखर गये और भाजपा कांग्रेस से आगे नही तो भी बराबरी पर है। 1984 के 2 सांसदो से 90 और 180 तक पहुंचने वालो को "राख से उठ खङे होने की क्षमता का प्रमाण नहीं है? याद करिए "काबा लूटी गोपिका वही अर्जुन वही बाण" कभी कभी ऐसी स्थिती स्वाभाविक ही है पर इसे नजरंदाज नही किया जा सकता। इसलिए भागवतजी के दोनो ही दावें सही है।
"संघ भले ही आपसे कुछ उम्मीदें रखता होगा, देश तो आपका नाम लगभग भूल चुका है।" श्री मान् कोठारीजी आप अपने आप में इतने बङे हो गये है कि आपको सामने घटती घटनायें भी दिखाई नही देती या देखना नहीं चाहते ।
बीबीसी के एक प्रश्नोतर मे कहा गया है कि गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन दुनियां में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बङा कोई नही है और अपने देशं के बाहर हिन्दू स्वयंसेवक संघ के नाम से अनेक देशो मे शाखाये चल रही है। हर वर्ष प्रत्येक नगर ग्राम में पथसंचलन खुले राज मार्गो पर निकलते हुए आपने नहीं देखें हो पर देश की 80 प्रतिशत जनता संघ की ओर आशा भरी निगाह से देख रही है।
आपने "गङकरी के पुत्र के विवाह" को भी याद किया है। गङकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अब बने है। वे उधोगपति पहले है। अन्य किसी भी उधोगपति के पुत्र के विवाह की चर्चा आपने क्यों नही की आपने भी पुत्र का विवाह किया होगा ।
"भाजपा के नेता किंकर्तव्य विमुढ हो गयें है लालक्रष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली अपनी अपनी कुर्सीयां खींच रहे थे। तब आप (भागवतजी) मौन क्यों थे? इस प्रकार के क्षुद्र प्रश्न की आप जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति से आशा नहीं की थी। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे प्रतिस्पर्धा विकाश का सोपान होती है। हर व्यक्ति को अपने क्षेत्र मे आगे बढने का अधिकार है। "रोयां बिना माँ ही बोबो नी देवे" हर क्षेत्र मे लागू होता है।
"वसुन्धरा राजे, भुवनचन्द्र खण्डूरी, उमा भारती और बाबूलाल गौर आदि का पत्ता साफ हुआ" आपके लिखने का अर्थ क्या यह नही है कि और किसी को मोका ही नही मिलना चाहिए? संगठन की नीति रिति ओर विकाश एवं उपयोगिता का भी ख्याल रखने की जिम्मेवारी हाईकमाण्ड की होती है। अनुशासन के लिए भी कभी कभी कठोर कदम उठाने पङते है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरपा पर विरोधियो ने जो आरोप लगायें है उनमे कितना दम है यह बात सदय् सम्पन्न हुए निकाय निर्वाचनों ने आरोप नकार दिया है। निकाय चुनावों मे भाजपा के 12 के मुकाबले कांग्रेस केवल 4 ही निकाय पा सकी। देवेगोङा की सेकूलर समाजवादी को मात्र 2 निकाय से संतोष करना पङा है। जनतंत्र में जनता का बहुमत का निर्णय सर्वोपरी होता है ।

"बांग्लादेशी मियां,काश्मीर से निस्कासित हिन्दूओं की समस्या" का समाधान सरकार की जिम्मेदारी है। 85 वर्ष से समाज संगठन का कार्य देश के मध्य स्थान नागपुर से देश की दशोदिशाओं में समान रुप से प्रकाश फैलाया है। आभामण्डल के विस्तार की सीमा होती है। सुदूर पूर्व , उतर और दक्षिण में पहुंचने मे समय तो लगेगा ही मजबूत होते ही  समस्या का स्वतः समाधान होगा । "संघ में कट्टरवाद को अगर स्थान होता तो क्या बांग्लादेश ओऱ पाकिस्तान की तरह अल्पसंख्यक यहां इतने सम्मान के साथ रह पाते । दीनदयालजी ने कहा था दशावतार के साथ हम तो मोहमदीय अवतार भी मान लेते अगर वे केवल धर्म के रुप में रहते पर अलगराष्ट्र बन कर रहने वालों ने हमारी मातृभूमि का विभाजन किया। क्या ये भुला जा सकता है |
अब भी संघ का मानना है कि भारत भूमि मे पैदा हुए भारतमाता के पुत्र रुप हमारे बन्धु है। आज नही तो कल वे अपने पूर्वजों को अवश्य याद करेगें।
परम पूजनीय श्री गुरुजी गोलवलकर कहा करते थे जीभ अगर दातों के बीच आ जाये तो हम दांत तोङकर नहीं फेंकते वैसे ही धीरे धीरे समाज जाग्रत अनुशासित और संगठित होगा तब सब साथ आ जायेगें । उनका मानना था कि जनतंत्र मे सारी शक्तियां समाज में नीहित है। इसलिए समाज को संगठित अनुशासित और चरित्रवान बनाओं समस्यायें अपने आप समाप्त हो जायेगी।
आज भ्रष्टाचार का हव्वा खङा किया जा रहा है। संसद मे,विधान सभाओं में, सरकारी कर्मचारी , सेना के जवान और अधिकारी सब अपने भाई है इसी समाज से गये है। हमारा चरित्र जैसा होगा वे भी तो वैसे ही होंगें। इसलिए संघ का मानना है कि समाज को संगठित ओऱ चरित्रवान बनाओं तभी सब क्षोत्रों मे चरित्रवान लोग पहुंचेगें। वैसे ॠषि विश्वामित्र   का उदाहरण हमारे सामने है। दस हजार वर्ष की तपस्या के बावजूद वे फिसल गये थे। इसलिए डॉक्टर हेडगेवार ने संघ के गुरु स्थान पर व्यक्ति नही प्रतीक भगवा ध्वज को रखा जिसमे हजारों वर्षो का इतिहास ,त्याग और  अरूणिम प्रकाश से शिक्षा नित्य शाखाओं में मिलती है।
अन्त मे शंकरजी,प्रकाशजी,इन्द्रेशजी,सुरेशजी सोनी,गुलाबचन्दजी कटारिया,धनश्याम तिवाङी और  ललित किशोर चतुर्वेदी के नाम गिनाये जिनका इतिहास भागवत जी को तो पता है।परन्तु आपके सिवाय राजस्थान की जनता को भी पता है। मैनें क्योंकि 1963 में शंकर जी के साथ तृतीय वर्ष किया है। मेरे दो छोटे भाई प्रचारक रहे है। प्रचारक का जीवन कैसा होता है। आचार्य श्री तुलसी और  आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दो मे "संध के प्रचारक हम सन्यासियों से कम नहीं है| सिंह की गुफा पर चातुर्मास करना सरल है पर समाज मे रहकर सन्यास निभाना बहुत कठिन है। आप लोग समाज में रहकर भी सन्यास पालन करते है। यह बहुत बङी बात है।"                 
श्री विजय कृष्णनाहर 1955 से 1982 तक प्रचारक रहे है आपातकाल मे उदयपुर विभाग प्रचारक थे ओर 1977 के निर्वाचन मे उदयपुर संभाग के 38 मे से 36 विधायक चुन कर भेजे थे।
आपने मोहनराव जी भागवत को "पुष्कर जाकर यह संकल्प अवश्य कर जायें कि शेष जीवन भारत माता को समर्पित रहेगा। लज्जा करनी चाहिए एक गृहस्थ व्यक्ति सन्यासी को ज्ञान देने का साहस कर रहा है। जिनके नेतृत्व  उच्च शिक्षा सम्पन्न हजारों प्रचारक भारत माता की सेवा में समर्पित है ये सारा संसार जानता है।    
मानमल्ल नाहर की कलम से

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